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बिबियापुर कोठी

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श्रेणी ऐतिहासिक

कोठी बिबियापुर

गोमती नदी के दाहिने तट पर, नगर के दक्षिण-पूर्वी भाग में स्थित इस शाही भवन का निर्माण, नवाब आसफुद्दौला (सन् 1775–97 ई0) द्वारा करवाया गया था तथा इसका प्रारूप जनरल क्लॉड मार्टिन के निर्देशन में तैयार किया गया था। यह भवन एक आयताकार तल- विन्यास में लखौरी ईंटों और चूने के मसाले द्वारा निर्मित है तथा इस पर चूने का मोटा प्लास्टर किया गया है।

यह द्वितलीय भवन यद्यपि साधारण सा प्रतीत होता है परन्तु इसकी रूप-रेखा आकर्षक है। इसमें विस्तृत कक्ष, शहतीरों एवं कड़ियों युक्त ऊँची छते, घुमावदार सीढियाँ तथा भव्य दोहरे स्तम्भ इत्यादि हैं। भूतल पर स्थित एक कक्ष को नीली व सफेद टाईलों द्वारा सुरूचि पूर्ण ढंग से सज्जित किया गया है। नवाबों ने इस भवन का उपयोग अपने यूरोपीय अतिथियों के सत्कार हेतु किया था । नवाब आसफुद्दौला की मृत्यु के पश्चात यहाँ सन् 1797 ई0 में आयोजित एक दरबार में सर जॉन शोर ने सआदत अली खाँ को सिंहासन का वैध उत्तराधिकारी घोषित किया था। सन् 1856 ई0 में अवध का विलय हो जाने के पश्चात इस स्थल का विभिन्न उत्सवों आदि के लिए उपयोग अंग्रेजो, विशेष रूप से सैन्य आधिकारियों द्वारा किया जाने लगा।

बिबियापुर कोठी का वास्तुशिल्प डिजाइन सरलता और सौष्ठव का एक अद्भुत मिश्रण है, जिसमें विस्तृत हॉल, लकड़ी के बीम और राफ्टर्स से सजी ऊंची एवं वृहद छत, स्पायरल सीढ़ियां और प्रभावशाली डबल कॉलम हैं। विस्तृत मुख्य  हॉल सफेद और नीले यूरोपीय टाइल्स से सुशोभित था है, जो वातावरण में एक सौष्ठव की हवा जोड़ता था । एक आयताकार जमीन योजना पर निर्मित, इमारत के लखौरी ईंटें चूने के मोर्टार में बिछाई गई थीं  और मोटे चूने के प्लास्टर से लेपित थीं , जो इसके निर्माताओं की बुद्धिमत्ता का प्रमाण है।

वर्तमान में, बीबियापुर कोठी एक संरक्षित स्मारक के रूप भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा संरक्षित है, जिसका नोटिफिकेशन नंबर यूपी448/924, दिनांक 05.04.1917 है, जो इस सांस्कृतिक खजाने को अनंत काल के लिए संरक्षित करने का विश्वास जगाता है।

फोटो गैलरी

  • BibiyaPur (1)
  • BibiyaPur (5)
  • BibiyaPur (4)

कैसे पहुंचें:

बाय एयर

अमौसी

ट्रेन द्वारा

चार बाग

सड़क के द्वारा

चार बाग