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हनुमान मन्दिर अली गंज

श्रेणी धार्मिक

लखनऊ का प्राचीन हनुमान मंदिर अलीगंज मोहल्ले में स्थित है, जो नवाब शुजाउद्दौला की पत्नी नवाब वाजिद अली शाह की दादी आलिया बेगम द्वारा बसाया गया था। यह मंदिर सामाजिक समरसता का जीवंत उदाहरण है, जहां हर वर्ष ज्येष्ठ मास के प्रत्येक मंगलवार को सभी धर्मों और पंथों के अनुयायी श्रद्धा पूर्वक मनौतियां मानते हैं, चढ़ावा चढ़ाते हैं और प्रसाद ग्रहण करते हैं। इस मेले को बड़े मंगल का मेला के नाम से जाना जाता है, जो लखनऊ के मुख्य मेलों में से एक है।

इस मंदिर का महत्व इतना अधिक है कि लखनऊ में ही नहीं, बल्कि दूर-दूर तक जहां हनुमान जी का कोई नया मंदिर बनता है, वहां की मूर्ति के लिए पोशाक, सिंदूर, लंगोट, घण्टा और छत्र आदि यहां से बिना मूल्य लिए भेंट किए जाते हैं और तभी वहां की मूर्ति स्थापना प्रमाणित मानी जाती है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, रामायण काल में इस मंदिर का आदिस्त्रोत महानगर कालोनी में हीवेट पॉलीटेक्निक के निकट स्थित इस्लामबाड़ी में था। कहते हैं कि जब भगवान श्री रामचन्द्र जी ने माता सीता जी को त्यागने का निश्चय कर लिया और श्री लक्ष्मण जी, श्री हनुमान जी के साथ श्री सीता जी को लेकर कानपुर जिले के बिठूर के वन में छोड़ने जा रहे थे, तब वर्तमान अलीगंज के पास आते-आते काफी अंधेरा हो गया और रातभर रास्ते में ही विश्राम करने की आवश्यकता प्रतीत हुई। अतः वे तीनों रास्ते में ही सोच-विचार के लिए रुक गए।

इस मंदिर के निर्माण के पीछे कई किंवदंतियां हैं। एक किंवदंती के अनुसार, अवध के तत्कालीन नवाब मोहम्मद अली शाह की बेगम को संतान की कामना के लिए इस्लामाबाड़ी के बाबा के पास जाने की सलाह दी गई थी। उनकी अभिलाषा पूरी होने के बाद, उन्होंने ह एक किंवदंती प्रचलित है कि गर्भावस्था के दौरान उन्हें एक स्वप्न आया , जिसमें उनके गर्भस्थ पुत्र ने उनसे कहा कि इस्लामबाड़ी में हनुमान जी की मूर्ति गड़ी है, जिसे निकालकर किसी मंदिर में प्रतिष्ठित किया जाना चाहिए। इस स्वप्न के फलस्वरूप रबिया बेगम ने नवाब के कारिंदों को वहाँ भेजकर टीला खोदवाया और मूर्ति निकाल ली गई। बाद में उस मूर्ति को साफ-सुथरा करके सोने-चाँदी तथा हीरे-जवाहरात से मंडित एक हौदे पर बैठाकर हाथी पर रखा गया। जब यह हाथी अलीगंज की सड़क से गुजर रहा था, तो वह आगे बढ़ने से इनकार कर दिया। महावत की लाख कोशिशों के बावजूद हाथी ज्यों-का-त्यों अड़ा रहा। अंत में रबिया बेगम ने हौदा उतरवा दिया, तब वह चलने लगा, लेकिन जब फिर से हौदा रखा गया, तो वह पुनः बैठ गया। तब साधु ने कहा कि हनुमान जी गोमती के उस पार नहीं जाना चाहते, क्योंकि वह लक्ष्मण जी का क्षेत्र था इसपर  बेगम ने उस स्थान पर ही मूर्ति स्थापित कर दी और उस पर एक मंदिर बनवाया। साथ ही साधु को सरकारी खर्च पर मंदिर का महंत नियुक्त कर दिया गया। मंदिर के लिए आस-पास की अधिकांश जमीन महमूदाबाद रियासत की ओर से मुफ्त में दे दी गई।

किंतु मेला अभी आरम्भ नहीं हुआ था। एक किंवदंती के अनुसार, मंदिर-स्थापना के दो-तीन वर्ष बाद उस क्षेत्र में प्लेग महामारी फैली, और सैकड़ों-हजारों लोग इस घातक रोग से बचने के लिए पुराने मंदिर के हनुमान जी के मंदिर में गये। तब वहाँ के पुजारी को स्वप्न हुआ, जिसमें हनुमान जी ने कहा कि ये लोग यहाँ नहीं, उस नये मंदिर में जाएं, मैं वहाँ वास करता हूँ, मेरी शक्ति वहाँ की मूर्ति में है। फलतः वह पूरी भीड़ उस नए मंदिर में चली आई, और उनमें से बहुतों को स्वास्थ्य लाभ हुआ। तभी से इस नए मंदिर पर मेला लगने लगा।

एक अन्य किंवदंती के अनुसार, नवाब वाजिद अली शाह की दादी आलिया बेगम बहुत बीमार पड़ीं और उन्होंने दुआ की, जिससे वह रोग समाप्त हो गया। इसके फलस्वरूप उन्होंने यहाँ बहुत बड़ा उत्सव मनाया, लाखों की खैरात बाँटी, और तभी से मेले की परम्परा चालू हो गई। इसी के साथ-साथ आलिया बेगम के नाम पर इस पूरे मुहल्ले का नाम अलीगंज रख दिया गया।

आज भी इस सुविख्यात मंदिर में प्रतिवर्ष ज्येष्ठ माह में बड़े मंगल के अवसर पर लाखों श्रद्धालु आ कर विभिन्न आयोजनों में सम्मिलित हो कर भगवान श्री हनुमान का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।

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